कब समझेगी कांग्रेस ?

आखिर कांग्रेस को कब समझ आएगा की पार्टी को  एक ही परिवार की जागीर बना देने से उसका राजनितिक व् सामाजिक महत्त्व लगभग समाप्त हो गया है। 
अभी कुछ दिनों पहले कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओ जैसे कपिल सिब्बल व गुलाम नबी आजाद ने  इस विषय पर अंदरूनी तौर पर व् पब्लिक मैं मिडिया के सामने भी खुलकर अपने विचार रखे थे जिस कारण उन्हें पार्टी हाईकमान से नाराजगी भी झेलनी पड़ी थी। 

अभी हाल ही में संपन्न हुए बिहार विधानसभा चुनावो में कांग्रेस को मिली करारी हार से पार्टी के अंदर फिर से अंतरकलह शुरू हो गया है , 77 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली देश की मुख्य विपक्षी पार्टी जो केंद्र मैं 5 दशक से भी ज्यादा सत्ता मै रही है मात्र १७ सीट ही जीत पायी, पार्टी कार्यकर्ता दबी जुबान मैं व् महागठबंधन मित्र खुलेआम श्री राहुल गाँधी को इसके लिए जिम्मेदार मानते है, कहा जा रहा है की ७७ सीट पर चुनाव लड़ने के बाद भी कांग्रेस हाईकमान ने 50 राजनैतिक रैलिया भी बिहार मै नहीं की, इसके साथ साथ उनका यह भी मानना है की श्रीमती प्रियंका गाँधी भी चुनाव के दौरान कही नजर नहीं आयी। 

वर्तमान परिस्तिथि के अनुसार अगर शीघ्र ही कांग्रेस पार्टी अपनी परिवारवाद सोच को नहीं बदलती है तो आने वाले समय मैं अच्छे परिणाम की अपेक्षा नहीं की जा सकती है, पार्टी के अंदर वरिष्ठ कार्यकर्ताओ के विचारो का सम्मान करना पड़ेगा व उनके अनुभव का लाभ लेकर भविष्य के लिए रूपरेखा बनानी पड़ेगी।  

कांग्रेस पार्टी आजाद भारत की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी है एक समय ऐसा भी था की सम्पूर्ण भारत मैं लगभग हर व्यक्ति कांग्रेसी प्रतीत होता था अतः इतनी सम्पन विरासत के होते हुए भी आज इस हाल मैं पार्टी का पहुँच जाना की व अपने दम पर अकेले कोई भी चुनाव जितने की स्तिथि मैं नहीं है, पार्टी हाईकमान व रणनीति पर प्रश्न चिन्ह लगाता है ?

वर्तमान समय में जहाँ राष्ट्रवाद व देश प्रेम की परिभाषा को व्यक्त करने में समाज ख़ुशी महसूस कर रहा है वही कांग्रेस कही न कही आम जन  मानस की इस नब्ज को टटोल नहीं पा रही है, छद्म सेकुलरवाद के अपने ही बनाये हुए जाल में मछली की तरह फंसती जा रही है और रही सही कसर उसके नेता लोग उलटे सीघे बयान देकर पूरी कर देते है।  
निचले स्तर का कार्यकर्ता पार्टी लीडरशिप से जुड़ा हुआ नहीं है या इसको अन्य शब्दों में यह भी कह सकते है की पार्टी हाईकमान का निचले स्तर पर कार्यकर्ताओ से कोई व्यवस्थित सम्पर्क या संवाद नहीं है जिसका परिणाम यह होता है कार्यकर्ता स्थानीय स्तर पर अपनी कृति से संघठन की विचारधारा को बहुत हानि पहुंचाता है और चुनाव में पार्टी लगातार हार का मुँह देखती है।  

स्थानीय मुद्दों की कम समझ, कार्यर्ताओ से जुड़ाव न होना  व निजी स्वार्थ को चलते नेताओ के बीच मुखर होता शीतयुद्ध पार्टी को गर्त में ले जाने का कार्य कर रहे है। 





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