INDIAN FARMER PROTEST - किसान अंदोलन

INDIAN FARMER PROTEST - किसान अंदोलन  





भारत की राजधानी दिल्ली मै आजकल किसान आंदोलन की वजह से आम पब्लिक बहुत परेशान है !

कृषि सुधार बिल

भारत सरकार ने अभी कुछ दिनों पहले ही कृषि सुधार के लिए तीन बिल पास किये है. जब बिल पास हुए थे तब सभी राज्य सरकारों ने इनका स्वागत किया था लेकिन धीरे धीरे इन बिलो के विरोध में आवाज उठने लगी इसमें सभी विपक्षी दलों ने अपने अपने तरीके से लोगो को जुड़ने के लिए आवाहन किया और बिल के विरोध में एक माहौल बनाना शुरू क्र दिया इसका परिणाम यह हुआ की कुछ लोगो की आवाज बनने वाला यह विरोध एक बहुत बड़े आंदोलन मैं बदल गया। 

किर्षि सुधारो के लिए भारत सरकार के बनाये गए बिलो को वापिस लेने के लिए लोगो ने इनका विरोध शुरू कर दिया इसके साथ ही साथ कई सारे किसान संघठन भी इसमें जुड़ गए और इन लोगो ने दिल्ली को चारो तरफ से घेर कर दिल्ली मैं आने वाले सभी रस्ते बंध कर दिए.

भारत की राजधानी दिल्ली की सीमाएं हरियाणा व् उत्तर प्रदेश से मिलती है ,  दिल्ली जाने वाले सभी रास्तो पर किसान संघठनो ने आंदोलन करने के लिए सड़क पर टेंट लगाकर आंदोलन को गति दे दी. 
सभा बॉर्डर पर किसानो ने ट्रेक्टर व् ट्रॉलियों से रस्ते बांध करके मंच बनाकर किसान नेताओ ने भाषण देना व् अधिक संख्या मैं लोगो को जुड़ने की अपील करने लगे धीरे धीरे लोग इस आंदोलन से जुड़ने लगे व्  दिल्ली बॉर्डर पर भीड़ जमा होने लगी। 

भारतीय किसान यूनियन व् अन्य छोटे छोटे बहुत  से किसान संघठनो ने किसान संयुक्त मोर्चा बनाकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और तीनो बिलो को वापिस लेने के लिए सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया।
प्रारम्भ मैं किसान संघठन तीनो कृषि कानूनों को किसान के विरोध मैं बनाये गए बिल बताकर व इनको काला क़ानून कहकर सरकार का विरोध किया और जब तक सरकार इन तीनो बिलो को वापीस नहीं लेती किसान लोग अपने घर वापिस नहीं जायेंगे, किसानो का यह विरोध नवंबर महीने मैं शुरू किया था जब सर्दी के मौसम था और बीच बीच मैं कभी कभी बरसात भी हो रही थी लेकिन इन सभी हालातो के कहते भी किसानो के आंदोलन पर कोई बहुत बड़ा फर्क पड़ा और किसानो को भारत के चारो कोनो से समर्थन मिलना शुरू हो गया.

मिडिया की भूमिका 

जैसे जैसे किसान आंदोलन की लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी उनके चरो तरफ मिडिया की भरमार भी बढ़ रहे थी , भारत मैं काम करने वाला प्रत्येक न्यूज चैनल का पत्रकार दिल्ली के बॉर्डर पर किसान आंदोलन को कवर कर रहा था लगभग सभी मिडिया हॉउस की वे किसान आंदोलन स्थल पर नजर आ रही है. 
मिडिया का काम है कोई भी बड़ी घटना को लोगो तक पहुंचना इसके साथ साथ ही भारत मैं मिडिया आम समाज का एक दृष्टिकोण भी किसी घटना के लिए त्यार करने मैं महत्वपूर्ण भूमिका निभता है  और किसान आंदोलन के साथ भी मिडिया हॉउस यही कर रहे है जिस मीडया हॉउस का जो भी या जैसा भी विचार है वह उसी तरह से इस किसान आंदोलन के समर्थन या विरोध क्र रहा है। 

किसान आंदोलन का एक दूसरा पहलु दिल्ली के जनता का परेशान होना भी है , रोज नौकरी पर जाने वाले लोग ए दिन इस तरह के आंदोलनों से बहुत ही ठगा हुआ सा महसूस करती है क्योंकि यह वो लोग होते है जिनको इस तरह के आंदोलनों से कुछ भी लेना देना नहीं होता हैं उन्हें लगता है की उनकी गलती सिर्फ यह है की वो दिल्ली मै रहते है और उसकी कीमत वो रोज  नए तरह के आंदोलनों से होने बवाली परेशानियों से झुज्कर देते है। 
दिल्ली क्योकी भारत की राजधानी है तो किसी भी प्रकार के सरकाकर के विरोध के लिए हर राजनितिक दल कोई भी संघठन अपनी बात मनवाने के लिए या फिर सरकार के किसी भी निर्णय के विरोध के लिए दिल्ली  मैं भी धरना या प्रदर्शन या आंदोलन करना उचित समझता है इसका मुख्य कारन है मिडिया हॉउस का और विदेशी मिडिया की नजरो मैं नाना बहुत ही आसान हो जाता है और उनको पुरे देश या कहिये विश्व मैं भी अपनी बात को दिखने का अवसर मिल जाता है। 

इसी वजह से दिल्ली मैं आये दिन कोई न कोई विरोध प्रदर्शन या धरना या फिर कोई आंदोलन होता ही रहता है जिसकी वजह से दिल्ली मैं रहने वाले आम लोगो को बहुत ही कठिनाई का सामना करना पड़ता है और कई बार तो इन आंदोलनों या प्रदर्शनो मैं बिमार लोग भी फसकर अपनी जान गवां देते है , दिल्ली के अंदर भारत के उच्च गुणवत्ता वाले स्वास्थ्य संस्थान है जहाँ पुरे देश से लोग अपनी गंभीर बीमारियों का इलाज करवाने आते है और वह सब भी कभी कभी इस तरह के आंदोलनों मैं फंसकर बहुत ही परिशानियों का सामना करते है। 

आंदोलन करने वाले या विरोध धरना प्रदर्शन करने वालो को आपम लोगो की इन ीतकलीफो से बहुत कुछ लेना देना नहीं होता है, वो तो हर तरह परेशानी के लिए बस सरकार को ही दोषी ठहरने का काम करते है और उनको इस तरह के आम लोगो की दिक्क्तों मैं भी सरकार को कोसने का अवसर मिल जाता है। 

२६ जनवरी २०२१ पर अराजकता 


 वर्तमान समय मैं चल रहे  किसान आंदोलन को भारत के लगभग सभी किसानो ने अपने सर्मथन दिया था लेकिन २६ जनवरी की अराजकता ने बहुत सरे किसान सघठनो को वापिस घर जाने पर मजबूर क्र दिया। 

कृषि बिल वापिसी के साथ साथ ही किसानो की मांगे रोज रोज बदल रही है।  २६ जनवरी के दिन को सभी जानते है की भारत मैं गणतंत्र दिवस के रूप मैं मनाया जाता है इस दिन लाल किले पर भारत के प्र्धानममंत्री के द्वारा तिरंगा ध्वज फहराया जाता है व् राजपथ पर सेना द्वार शक्ति प्रदर्शन किया जाता जाता है  इसके साथ साथ ही सभी राज्यों से भी उनकी विशिष्ट पहचान बताने वाली झांकिया भी राजपथ से निकाली जाती है।  इस दिन कोई न कोई विदेशी प्रधानमंत्री या फिर किसी देश का राष्ट्रपति को विशेष मेहमान के रूप मैं भारत सरकार द्वारा मेहमान के रूप में आमंत्रित किया जाता है।  २६ जनवरी के दिन का भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए  विशेष महत्व है, यह सब जानते हुये भी आंदोलनकारियों ने ट्रेक्टर रैली निकलने की जिद की जबकि इस दिन कोई अप्रिय घटना न हो जाये इसके लिए विशेष सुरक्षा के इंतजाम दिल्ली मैं किये जाते है, आतंकवादी घटना भी हो सकती है ऐसा सोचकर सभी सुरक्षा एजेंसियां इस दिन बहुत ही मुस्तैद रहती है, ऐसे समय मैं ट्रेक्टर रैली के लिए  आंदोलनकारियों की जिद बिलकुल बेमानी थी लेकिन भी दिल्ली पुलिस ने आंदोलनकारियों के साथ बैठकर एक रुट निश्चित किया जिस पर ट्रैक्टर की रैली निकाली जा सके और इसके साथ ही रॉय का समय भी तय हो गया सभी किसान नेताओ के साथ बैठकर. 
लेकिन २६ जनवरी २०२१ को आंदोलनकारियों ने ट्रक्टर रैली के लिए तय किये गए समय व् रुट को धत्ता बताते हुए रैली शुरू कर दी, पुलिस के साथ झड़पे हुई कई पुलिस वाले घायल भी हुए आन्दोलनकारियो ने पालिसी पर लाठिया व् पथर बरसाने शुरू कर दिए जिसके जवाब मैं कही कही पुलिस ने भी लाठिया व् आशु गैस का प्रयोग किया, ट्रैक्टर पर सवार लोगो ने जमकर उत्पात मचाया कई लोग तो ट्रक्टर पर खतरनाक स्टंट करने के चक्कर मैं जान से हाथ धो बैठे।  पूरी दिल्ली मैं इन आंदोलनकारियों ने भयंकर उत्पात मचाया और इसके साथ ही साथ इन्होने लाल किले पर जाकर एक धार्मिक ध्वज भी फहरा दिया, लाल किले की सुरक्षा मैं तैनात पुलिस कर्मियों ने बहुत धैर्य के साथ इन लोगो को लाल किले के अंदर आने व् उत्पात मचाने से रोका लेकिन उन्मादी भीड़ ने एक नहीं सुनी व् लाठी डंडो से पुलिस पर हमला कर दिया , पुलिस वालो ने भागकर अपनी जान बचायी. 

सोशल मिडिया पर इस तरह की विडिओ खूब वाइरल हो रही है जहाँ इन तथाकथित किसानो की भीड़ ने पुलिस वालो पर खूब लाठी डाँडो का प्रयोग किया और पुलिस जान बचने ले लिए भागती नजर आ रही है। 

२६ जनवरी को हुई इस अराजकता ने किसान आंदोलन के नाम पर हुई इस गुंडागर्दी व् सरकारी  सम्पति के नुक्सान को देखते हुए एक दो संघठनो को छोडकर सभी हतोत्साहित हो गए, इस आंदोलन मैं कई देश विरोधी शक्तियां भी शामिल हो गयी जिनका उद्देश्य देश मैं अराजकता बढ़ाना है इसके साथ साथ ही आंदोलन मैं विदेशी फंडिंग की बात भी सामने आ रही है और इस तरह के समाचार और भी पुख्ता हो जाते है जब रिहाना व् ग्रेटा ने ट्विटर पर आंदोलन के लिए ट्ववीट किया,  से किसान आंदोलन की बहुत ही छीछालेदर हुई।  

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रिय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कैमरे के सामने रोने से अब आंदोलन की हवा ही बदल दी पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानो को भावुक कर दिया व् ख़तम हो रहे अंदोलन को संजीवनी बूटी का काम कर दिया, दिल्ली उत्तर प्रदेश की सीमा गाजीपुर बॉर्डर पर किसानो का ट्रैक्टर के साथ फिर जमवड़ा लगने लगा इससे सरकार की मुश्किलें और बढ़ गयी है।  

सरकार के सामने इस प्रयोजित अंदोलन को शीघ्र ही समाप्त करने की बड़ी चुनौती है , इस अंदोलन को अब तक लगभग ३ महीने होने जा रहे है,  बॉर्डर पर व् दिल्ली मैं रहने वाले लोगो को बहुत चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. 

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